Hadappa sabhyta new update | हड़प्पा काल में हरियाणा में बहती थी दो नदियाँ

 


हड़प्पाकालीन सभ्यता को हमारी वैदिक सभ्यता से जोड़कर देखा जा रहा है। वेदों में सरस्वती नदी के बारे में लिखा गया है। जहां बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने तपस्या की थी, उस सरस्वती नदी की अविरल धारा हरियाणा में बहती थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में आर्केलॉजिकल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सुरेंद्र वशिष्ठ का दावा है कि हरियाणा में एक नहीं, बल्कि दो नदियों का प्रवाह था। एक थी सरस्वती तो दूसरी दृषदवती नदी ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख है। हरियाणा के उत्तर में सरस्वती नदी बहती थी और दक्षिण में दृषदवती।

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दोनों नदियों का उद्गम स्थल यमुनानगर के पास आदिव्रदी था। यहां से यह नदी मैदानी इलाकों में प्रवेश करती थी। दृषदवती नदी ही हिसार के राखीगढ़ी से होकर राजस्थान होते हुए पाकिस्तान जाती थी और अरब सागर में जाकर मिलती थी। आज जो भी हड़प्पाकालीन साइटें मिल रही हैं, वह इन दोनों नदियों के किनारे मिल रही हैं।

 प्रो. सुरेंद्र वशिष्ठ का कहना है कि जब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ, उस समय सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी थी। इसलिए ऐसी जगह युद्ध लड़ा गया था जो बिल्कुल उजाड़ थी। सरस्वती नदी के सूखने के साथ-साथ लोग यहां से पलायन करके यमुनानगर की तरफ चले गए। इसके बाद यमुनानगर के आसपास क्षेत्र में चित्रित सभ्यता का उदय हुआ। वहां इसके प्रमाण भी मिले हैं। 

पाकिस्तान में सरस्वती नदी को ही हाकड़ा नदी कहा जाता था। वहां हड़प्पाकालीन साइट से जो मिट्टी के बर्तन मिले हैं, वह हरियाणा में मिले साइटों से प्राप्त बर्तनों मिलते हैं। प्रो. सुरेंद्र बताते हैं कि हड़प्पाकालीन सभ्यता से पहले पाषाण काल था। इसमें मनुष्य पत्थरों का इस्तेमाल करना सीखा। हड़प्पाकालीन सभ्यता से मिले पत्थर के हथियार नुकीले थे इसके अलावा अन्य कार्यों में पत्थरों का प्रयोग होता था। इससे पता चलता है कि पाषाण काल के बाद ही हड़प्पाकालीन सभ्यता का उदय हुआ। प्रोफेसर सुरेंद्र वशिष्ठ की सरस्वती घाटी में उत्खनित पुरास्थल नामक पुस्तक दिसंबर में आएगी।

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आदिबद्री से हरियाणा में दो नदी प्रवेश करती थीं : पुणे की डेक्कन यूनिवर्सिंटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. वसंत शिंदे भी प्रो. सुरेंद्र वशिष्ठ की बातों से सहमत दिखते हैं। प्रो. शिंदे ने भी हरियाणा में दो नदियों के बहने का जिक्र किया। उनका कहना है कि दृषदवती का जिक्र हमारे पुराणों में है। यह नदी आदिबद्री से निकलती थी और राजस्थान में सूरतगढ़ के पास कालीबंगा के पास आकर मिलती थी। कालीबंगा में भी पुरातन साइट है जिसमें इसके प्रमाण मिले हैं। सरस्वती और दृषदवती के बीच का जो क्षेत्र है वह पुरातन की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है।

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